वांछित मन्त्र चुनें

स तेजी॑यसा॒ मन॑सा॒ त्वोत॑ उ॒त शि॑क्ष स्वप॒त्यस्य॑ शि॒क्षोः। अग्ने॑ रा॒यो नृत॑मस्य॒ प्रभू॑तौ भू॒याम॑ ते सुष्टु॒तय॑श्च॒ वस्वः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tejīyasā manasā tvota uta śikṣa svapatyasya śikṣoḥ | agne rāyo nṛtamasya prabhūtau bhūyāma te suṣṭutayaś ca vasvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। तेजी॑यसा। मन॑सा। त्वाऽऊ॑तः। उ॒त। शि॒क्ष॒। सु॒ऽअ॒प॒त्यस्य॑। शि॒क्षोः। अग्ने॑। रा॒यः। नृऽत॑मस्य। प्रऽभू॑तौ। भू॒याम॑। ते॒। सु॒ऽस्तु॒तयः॑। च॒। वस्वः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:19» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) पूर्ण विद्या के प्रकाश से युक्त ! हम लोग जिस (स्वपत्यस्य) उत्तम सन्तान वा विद्यार्थियों के सहित (नृतमस्य) अत्यन्त शूरवीरों से विशिष्ट (शिक्षोः) शिक्षक पुरुष (ते) आपकी शिक्षा में (सुष्टुतयः) उत्तम स्तुति कर्त्ता श्रेष्ठ पुरुष (तेजीयसा) तेजस्वी पवित्रस्वरूपवान् (मनसा) अन्तःकरण से (वस्वः) सुखपूर्वक निवास का कारण धन तथा (रायः) ऐश्वर्य्य के (प्रभूतौ) बहुत्वभाव में (भूयाम) वर्त्तमान होवें (सः) वह (त्वोतः) आपकी कामना करता हुआ जो ऐसा पुरुष उसको (च) और हम लोगों को (उत) भी आप (शिक्ष) विद्योपदेश दीजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष ब्रह्मचर्य्य और विद्या से धर्मसम्बन्धी कामों को करके निष्कपट अन्तःकरण तथा आत्मा से प्रयत्न करें, उनको धनपति का अधिकार देना योग्य है ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने वयं यस्य स्वपत्यस्य नृतमस्य शिक्षोस्ते शिक्षायां सुष्टुतयस्सन्तस्तेजीयसा मनसा वस्वो रायः प्रभूतौ भूयास स त्वोत उत तमस्मांश्च त्वं शिक्ष ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (तेजीयसा) तेजस्विना शुद्धस्वरूपेण (मनसा) अन्तःकरणेन (त्वोतः) त्वां कामयमानः (उत) अपि (शिक्ष) विद्यां ग्राहय (स्वपत्यस्य) शोभनान्यपत्यानि विद्यार्थिनो वा यस्य तस्य (शिक्षोः) शिक्षकस्य (अग्ने) पूर्णविद्याप्रकाशयुक्त (रायः) ऐश्वर्यस्य (नृतमस्य) अतिशयेन नायका यस्य तस्य (प्रभूतौ) बहुत्वे (भूयाम) (ते) तव (सुष्टुतयः) शोभनाः) स्तुतयो येषां ते (च) (वस्वः) वसुना सुखेन वासहेतोर्धनस्य ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये ब्रह्मचर्य्येण विद्यया धर्म्याणि कृत्यानि कृत्वा शुद्धेनान्तःकरणेनात्मना वा प्रयतेरंस्ते धनपतयो भवेयुः ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष ब्रह्मचर्य व विद्या याद्वारे धर्मासंबंधी कार्य करून निष्कपट अंतरात्म्याने प्रयत्नशील असतात, त्यांना धनपती करावे. ॥ ३ ॥